Monday 17 October 2016

कुछ बोलने से पहले एक बार तो आवश्य सोच लें की क्या है “बिहार”


लोग बिहार और बिहारियोँ के बारे मेँ बहुत कुछ बोल देते है मैँ उनसे आग्रह करुंगा कि बोलने से पहले एक बार सोचले की बिहार क्या है

बिहार – जहाँ सबसे पहले महाजनपद बना अर्थात विश्व का पहला लोकतंत्र

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अशोक पिलर
बिहार – जहाँ भगवान् महावीर और बुद्ध का जन्म हुआ और ज्ञान मिला

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बिहार – जहाँ के नंदवंश से लड़ने की हिम्मत सिकंदर को भी नही हुई और बिना लड़े विश्वविजेता डर कर भाग गया

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बिहार – जहाँ के राजा महान अशोक ने अरब तक हिंदुस्तान का पताका फहराया और उसका स्तम्भ आज देश का राष्ट्रीय चिन्ह है

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बिहार – राजा जराशंध ,पाणिनि(जिसने संश्कृत व्याकरण लिखा ), आर्यभट जिन्होंने शून्य ,दशमलव और सूर्य सिद्धांत दिया,चाणक्य(महान अर्थशात्री ),रहीम, कबीर का जन्म हुआ !

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बिहार-जहाँ गुरुगोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ

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बिहार – जहाँ के 80 साल के बूढ़े ने 1857 के क्रांति में दो बार अंग्रेजों को हरायाअंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए (बाबु वीर कुंवर सिंह )

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बिहार-जो गांधी जी का पहला प्रेणादायक स्रोत बना जिसने आज़ादी की आधारशिला रखी (चंपारण)

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बिहार – जिसने देश को पहला राष्ट्रपति दिया

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बिहार – जहाँ के गोनू झा के किस्से पुरे हिंदुस्तान में प्रशिद्ध है!

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बिहार – जहाँ महान जय प्रकाश नारायण का जन्म हुआ !

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बिहार – जहाँ भिखारी ठाकुर (विदेशिया) का जन्म हुआ !

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बिहार – जहाँ शारदा सिन्हा जैसी महान भोजपुरी गायिका का जन्म हुआ !

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बिहार – जहाँ – स्वामी सहजानंद सरस्वती, राम शरण शर्मा, राज कमल झा , विद्यापति, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, रामवृक्ष बेनीपुरी, देवकी नंदन खत्री ,इन्द्रदीप सिन्हा, राम करण शर्मा, महामहोपाध्याय पंडित राम अवतार शर्मा, नलिन विलोचन शर्मा, गंगानाथ झा, ताबिश खैर, कलानाथ मिश्र, आचार्य रामलोचन सरन, गोपाल सिंह नेपाली, बिनोद बिहारी वर्मा, आचार्य रामेश्वर झा, राघव शरण शर्मा, नागार्जुन, आचार्य जानकी बल्लभ शाश्त्री जैसे महान लेखको का जन्म हुआ !

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बिहार – जहाँ बिस्स्मिल्लाह खान का जन्म हुआ

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बिहार – जहाँ दशरथ मांझी जैसा सपूत पैदा हुआ

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बिहार-जहां एक साधारण शिक्षक SUPER 30जैसा निःशुल्क कोचिंग बिना किसी सहायत के चलाकर गरीब बच्चों को IIT में दाखिला दिलाता है

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बिहार -जहाँ का DGP(अभयानंद जी)गरीब मुश्लिम बच्चों को IIT की तैयारी कराते हैं



बिहार – जहाँ से सबसे ज्यादा बच्चे देश का सबसे कठिन परीक्षा u .p .s .c. और IIT पास करते है

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बिहार – जहाँ आज भी सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है ।

बिहार – जहाँ के बच्चे कोई सुविधा न होते हुए भी देश में सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी पते है !हम इसी बिहार के रहने वाले हैं ! तो क्यूँ न करे खुद के बिहारी होने पर गर्व !
जय मात्री भूमि, जय बिहार !!

Source: Apna Bihar

Thursday 13 October 2016

indian national pledge( भारतीय राष्ट्रीय प्रतिज्ञा)

 

Our Pledge

India is my country and all Indians are my brothers and sisters. I love my country and I am proud of its rich and varied heritage. I shall always strive to be worthy of it. I shall give respect to my parents, teachers and elders and treat everyone with courtesy.
To my country and my people, I pledge my devotion.In their well being and prosperity alone, lies my happiness.

Ashfaqullah Khan - निर्भय क्रांतिकारी अशफ़ाक उल्ला खान


अशफ़ाक उल्ला खां का जीवन परिचय

अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफ़ाक उल्ला खां ना सिर्फ एक निर्भय और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे. पठान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अशफ़ाक उल्ला खां ने स्वयं अपनी डायरी में यह लिखा है कि जहां उनके पिता के परिवार में कोई भी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका वहीं उनके ननिहाल में सभी लोग उच्च-शिक्षित और ब्रिटिश सरकार के अधीन प्रमुख पदों पर कार्यरत थे. चार भाइयों में अशफ़ाक सबसे छोटे थे. इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद ‘`बिस्मिल`‘ के सहपाठी थे. जिस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया था, तब रियायत, अपने छोटे भाई अशफ़ाक को उनके कार्यों और शायरी के विषय में बताया करते थे. भाई की बात सुनकर ही अशफ़ाक के भीतर राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने की तीव्र इच्छा विकसित हुई. लेकिन इस समय इसका कारण सिर्फ शायरी था. आगे चलकर दोनों के बीच दोस्ती का गहरा संबंध विकसित हुआ. अलग-अलग धर्म के अनुयायी होने के बावजूद दोनों में गहरी और निःस्वार्थ मित्रता थी. 1920 में जब बिस्मिल वापिस शाहजहांपुर आ गए थे, तब अशफ़ाक ने उनसे मिलने की बहुत कोशिश की, पर बिस्मिल ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वर्ष 1922 में जब असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई तब बिस्मिल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में भाग लेकर अशफ़ाक उनके संपर्क में आए. शुरूआत में उनका संबंध शायरी और मुशायरों तक ही सीमित था. अशफ़ाक उल्ला खां अपनी शायरी सबसे पहले बिस्मिल को ही दिखाते थे.

राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती

चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे. अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे. उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए. आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे. धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था. यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई.

काकोरी कांड

जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई. इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी. लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी. इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया. उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई. 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा.

काकोरी कांड में फांसी

जब अंग्रेजी सरकार को क्रांतिकारी गतिविधियों से भय लगने लगा तो उन्होंने बिना सोचे-समझे क्रांतिकारियों की धर-पकड़ शुरू कर दी. इस दौरान राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ पकड़े गए लेकिन अशफ़ाक उल्ला खां उनकी पकड़ में नहीं आए. पहले वह बनारस गए और फिर बिहार जाकर लगभग दस महीने तक एक इंजीनियरिंग कंपनी में कार्य करते रहे. वे लाला हर दयाल से मिलने के लिए देश से बाहर भी जाना चाहते थे. इसीलिए वह अपने दोस्त के पास दिल्ली आ गए ताकि यहां से विदेश जाने का रास्ता ढूंढ पाएं. लेकिन उनके दोस्त ने उनके साथ विश्वासघात कर पुलिस को उनकी सूचना दे दी. पुलिस ने अशफ़ाक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल अधिकारी तसद्दुक हुसैन ने धर्म का सहारा लेकर बिस्मिल और अशफ़ाक की दोस्ती तोड़ने की कोशिश की, पर इससे कोई लाभ हासिल नहीं हुआ. अशफ़ाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में रखकर कड़ी यातनाएं दी गईं. काकोरी कांड में चार लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई जिनमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां शामिल थे. 19 दिसंबर, 1927 को एक ही दिन एक ही समय लेकिन अलग-अलग जेलों (फैजाबाद और गोरखपुर) में दो दोस्तों, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खां, को फांसी दे दी गई.

अशफ़ाक उल्ला खां एक बहुत अच्छे कवि थे. अपने उपनाम वारसी और हसरत से वह शायरी और गजलें लिखते थे. लेकिन वह हिंदी और अंग्रेजी में भी लिखते थे. अपने अंतिम दिनों में उन्होंने कुछ बहुत प्रभावी पंक्तियां लिखीं, जो उनके बाद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए मार्गदर्शक साबित हुईं.

"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए, ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना; मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं, जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना"

"जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा? बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊंगा, फिर आऊंगा,फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आज़ाद कराऊंगा". जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ, मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं; हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा।"